अखिल भारतीय कर्ण राजपूत समाज
हमारे जाति बन्धु भारत के लगभग सभी प्रदेशों में निवास करते है। अधिकतर हिन्दी भाषा प्रान्तों उत्तर प्रदेश,राजस्थान,मध्य प्रदेश,दिल्ली,हरियाणा,महाराष्ट्र व गुजरात में अधिक संख्या में है ।
या यों कहें कि इन प्रदेशों के सामज बन्धु आपस में विवाह सम्बन्धों के द्वारा एवं जाति सम्मेलनौं के द्वारा एक दूसरे के सम्पर्क में हैं. एक दूसरे से परिचित हैं।
वे विभिन्न कार्य करते हैं और उन्हें समय समय पर वहां की बोली भाषा के अनुसार भिन्न भिन्न नामों से पुकारा जाता रहा है।
जैसे का ण्डीर कण्डारा ,काण्डीरा,कण्डेरे,कमनीगर, कमठेरे,कणेरे,कडेरे,कढेरे,धुना,धुनिया,धुनकर धनगर धन्वी,धुनावला,धनुर्धर,धनुषधर,धनुर्वेदी,धनुषधारी, पिजारे, पिंनारे, गोलंदाज , बारूदगिरि, दांगी, तिलगर, लाठी वाले, बाणधार , कर्णधार, कणॉवत आदि।।।
इनके साथ साथ आजकल हमारे समाज वन्धु कुछ क्षेत्रों में कर्ण, करण, करन, नागर, वर्मा, शर्मा, श्रीवास्तव, ठाकुर राजपूत आदि नाम भी लिखते व बोलते चले आ रहे है।
फिर भी इन सब नामों में से कण्डेरा एक ऐसा नाम है जो कि आणतौर पर सभी क्षेत्रौं में हमारी जाति के लिए प्रचलित है और सारे समाज को अभी भी एक सूत्र में पिरोये हुए है तथा अपनापन दिखलाता है।
इस एकता में होते हुये भी विभिन्न नामों से पुकारे जाने पर हमारे समाज में अनेकता दिखलाई पडती है यह एक समाज बुक है कुछ गलत हो में क्षमा मागतॉ हू ।।।
🙏🏻 भरत। ।।
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